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सुरेंद्र बैरागी: 'बर्तन बैंक' खोलकर मुफ्त में देते हैं बर्तन ताकि लोग प्लास्टिक से बने हुए यूज़ न करें


     Balodabazar raipur  ...  भारत समेत पूरी दुनिया अगर  तो उसे फैलाने में सिंगल यूज प्लास्टिक का बड़ा रोल है. प्लास्टिक ने भले ही हमारी कई तरीकों से मदद की है. स्टील, तांबा इत्यादि की तुलना में यह एक बेहद सस्ता विकल्प भी है. मगर इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्लास्टिक को एक बार इस्तेमाल के बाद खुले में फेंक देना पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है. इससे न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता घट जाती है. बल्कि पानी में जाने पर वह भी प्रदूषित होता है और जीव-जन्तुओं की मौत का कारण बनता है.

पूरा छत्तीसगढ़ वैष्णव समाज को गर्व है   सुरेंद्र बैरागी जी पर

यही कारण है कि दुनिया भर के लोग इस समस्या से निपटने के लिए अपने-अपने प्रयास कर रहे हैं. इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहने वाले बैरागी परिवार ने प्लास्टिक से तौबा कर ली है, और अब अपने 'बर्तन बैंक' के जरिए दूसरों को भी इसके लिए  प्रेरित कर रहा है. बैरागी परिवार द्वारा चलाया जा रहा है 'बर्तन बैंक' क्या है और उन्होंने किस तरह से प्लास्टिक के खिलाफ जंग छेड़ रखी है यह जानने के लिए हमने  परिवार के मुखिया सुरेंद्र बैरागी के साथ खास बातचीत की जिसमें उन्होंने अब तक पूरा सफर शेयर किया है:

सुरेद्र बैरागी एक लोहे की फैक्ट्री में क्लर्क के रूप में काम करते हैं. वो बताते हैं कि प्लास्टिक के खिलाफ हमारी लड़ाई हमारे घर से ही शुरू हुई. सबसे पहले हमने अपने घर से पैकिंग के लिए यूज होने वाली पॉलीथिन बैग को हटाया और उसके विकल्प के रूप में कपड़े के थैले अपनाएं. आगे अपनी पत्नी के सहयोग से उन्होंने पास के बाजार और अपने आसपास घर-घर कपड़े के थैले पहुंचाने का संकल्प लिया. 

बैरागी अपनी पुरानी यादों का ताजा करते हुए कहते हैं कि वो साल 2019 था. उनकी पत्नी ने सबसे पहले घर में रखी हुई एक चादर का उपयोग करते हुए कपड़े का थैला बनाया था. बाद में लोगों ने कपड़े डोनेट करने शुरू किए और परिवार प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग से लड़ने के लिए कपड़े के बैग को फ्री बाज़ारों में बांटना शुरू कर दिया.


परिवार के सदस्यों और अपने दोस्तों के साथ वह हर शाम अपने घर से निकले और सबको कपड़े के थैले बांटे. साथ ही वो लोगों से पॉलीथिन का उपयोग बंद करने के लिए निवेदन करना कभी नहीं भूले. लंबे समय तक यह मुहिम चली और लोगों ने इसे अपना प्यार दिया. आगे कोरोना महामारी का आगमन हुआ तो उनके परिवार ने एक नई पहल की.

रायपुर नगर निगम से सम्मानित किया गया 

बैरागी के अनुसार, लोगों को महामारी से बचाने और प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए उन्होंने अपने घर पर आसानी से डिस्पोज होने वाले मास्क बनाने शुरू किए और कोविड नियमों का पालन करते हुए उन्हें लोगों तक पहुंचाया. इस मुहिम में भी उनकी पत्नी ने पूरा साथ दिया. उन्होंने रात-रात भर जागकर मास्क तैयार किए.


प्लास्टिक का उपयोग रोकने के लिए 'बर्तन बैंक'

प्लास्टिक फ्री समाज की तरफ अपना एक और कदम आगे बढ़ाते हुए सुरेंद्र बैरागी अब एक 'बर्तन बैंक' चला रहे हैं. इसके तहत वो लोगों को शादी-ब्याह, भंडारा और बर्थडे जैसे कार्यक्रमों में खाना बनाने, परोसने और खाने के लिए हर तरह के बर्तन फ्री में मुहैया कराते हैं. उनका दावा है कि उनके इस कदम से उनके इलाके में प्लास्टिक के डिस्पोजल और प्लेट का उपयोग कम हो रहा है और लोग जागरुक हो रहे हैं.

सेवा टोली लोगो को जागरुक  करते रहते है

बैरागी के मुताबिक उनकी छोटी-छोटी मुहिमों का असर दिखने लगा है, जहां पास के बाज़ार में अब लोग कपड़े के थैले यूज करने लगे हैं. वहीं 'बर्तन बैंक' के कारण प्लास्टिक के डिस्पोजल और प्लेट का उपयोग भी कम हुआ है. आम लोग उनकी मदद के लिए आगे आ रहे हैं. लोग उन्हें आर्थिक मदद की पेशकश करते हैं. मगर वो मदद के रूप में अपने 'बर्तन बैंक' के लिए बर्तन ही लेते हैं और उन्हें लोगों को मुफ्त में देते हैं. बैरागी और उनके परिवार ने कसम खा रखी है कि वो कभी भी प्लास्टिक व थर्मोकोल के बर्तन में न खाएंगे और ना ही किसी को खाने देंगे.



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