जूट उत्पादन में बेतहाशा गिरावट के बाद इस बार पश्चिम बंगाल के जूट किसानों के मांग की आपूर्ति में पसीने छूटने लगे हैं। देश के लगभग सभी राज्यों से निकल रही मांग के बीच अब किसी तरह पुराना बचा स्टॉक नियंत्रित करके आपूर्ति की जा रही है लेकिन इसे अब पूरा किया जाना मुश्किल का काम दिखाई देने लगा है। समर्थन मूल्य पर कृषि उपज की खरीदी करने वाले राज्यों को जवाब दे दिया गया है कि उनकी मांग पूरी नहीं की जा सकेगी। इसलिए राज्य अब प्लास्टिक बैग, पुराने बारदाने और पीडीएस के बारदाने ले रही है लेकिन इसके लिए भी व्यवस्था मुश्किल जान पड़ रही है।
इसलिए उत्पादन जमीन पर
देश में जूट उत्पादन के लिए पश्चिम बंगाल का नाम सभी राज्यों में पहचान बना चुका है लेकिन इस बार बोनी के समय मार्च में कोरोना वायरस के मामले के आते ही जूट उत्पादक किसानों ने बोनी से दूरी बना ली क्योंकि यह काम पूरी तरह मानव श्रम पर आधारित है। गाईडलाईन के पालन में बरती गई कड़ाई के बाद जैसी बोनी हुई उसने रकबे में गिरावट लाकर रख दी। 7 महीनों में तैयार होने वाली फसल जब सितंबर में आई उसे देखकर अब यह साफ हो गया है कि देश की मांग पूरा करना संभव नहीं रहा। लिहाजा खरीददार राज्यों को सूचना भेजी जा चुकी है कि मांग की आपूर्ति नहीं की जा सकेगी।
यह राज्य बड़े खरीददार
पश्चिम बंगाल के जूट उत्पादक किसानों से होता हुआ यह जूट मिलों तक पहुंचता है जो जूट के थान तैयार करती है और यही उनसे जूट के बैग भी तैयार किए जाते हैं। सप्लाई में विलंब के बाद लगभग सभी राज्य अपने यहां निजी उद्यमियों को प्रोत्साहित करते हुए थान से जूट के बारदाने बनवाने लगी है लेकिन यह सभी अब जूट थान के संकट से दो-चार हो रही हैं। देश में पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और केरल बारदाना के सबसे बड़े खरीददार राज्य माने जाते हैं। इसलिए इन राज्यों के सामने अब सेकंड हैंड बारदाना या फिर प्लास्टिक बैग या पीडीएस के बारदाने विकल्प के रूप में शेष रह गए हैं।
इस दर पर बारदाना
40 किलो की भरती वाला सेकंड हैंड बारदाना की खरीदी पर इस बार 24 से 26 रुपए प्रति नग देने होंगे। बीते साल यह 20 से 22 रुपए प्रति नग पर मिल रहा था। प्लास्टिक बैग का चलन बढ़ने से यह भी प्रति नग 5 से 7 रुपए महंगा हो चुका है। अब रही बात नए बारदाने की तो नया जूट बारदाना 50 से 55 रुपए प्रति नग पर खरीदा जा सकेगा। 80 किलो की भरती वाला बारदाना चलन से बाहर होता जा रहा है फिर भी इसकी खरीदी पर 90 से 100 रुपए देने होंगे। याने किसान ही नहीं मिलों और सरकारी खरीदी भी महंगी पड़ने जा रही है।
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