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थोक के बाद अब चिल्हर बाजार की मनमानी खुदरा बाजार में 266 रुपए 50 पैसे वाली यूरिया बेची जा रही 390 रुपए में


यूरिया की कालाबाजारी, दोगुने दाम पर खरीद रहे किसान


थोक के बाद अब चिल्हर बाजार की मनमानी 
 खुदरा बाजार में 266 रुपए 50 पैसे वाली यूरिया बेची जा रही 390 रुपए में

यूरिया के साथ थमा  रहे 1 किलो का जिंक पाउडर

 बलौदाबाजार भाटापारा- पहले होलसेल काउंटर की मनमानी। यूरिया के साथ सल्फर लेने की शर्त। शिकायत पहुंची तो शुरू हुई जांच। आगामी आदेश तक ऐसे कारोबारियों के खुदरा कारोबार के लिए जारी लाइसेंस निलंबित कर दिए। अब चिल्हर बाजार की मनमानी। यूरिया चाहिए तो 350 से 390 रुपए देने होंगे प्रति बोरी यूरिया की खरीदी के लिए। इसके साथ मिलेगा जिंक पाउडर का 1 किलो का पैकेट। यह लेना ही होगा। सबसे बड़ी दिक्कत तो जिला मुख्यालय से दूर बसे गांव के किसानों को हो रही है जिन्हें एक बोरी यूरिया के लिए 400 से 450 रुपए देने पड़ रहे हैं।

जांच छापा और उर्वरक के विक्रय के लाइसेंस सस्पेंड करने के बाद होल सेल काउंटर ने रणनीति बदल दी है। अब यह खुदरा कारोबारियों को इस शर्त पर यूरिया की सप्लाई कर रहा हैं कि प्रति बोरी यूरिया की खरीदी के लिए उन्हें 1 किलो का जिंक का पैकेट लेना होगा। थोक बाजार की इस शर्त में चिल्हर बाजार पूरा साथ दे रहा है क्योंकि एवज में अच्छी-खासी रकम उन तक पहुंच रही है। किसानों की मजबूरी है कि जरूरी नहीं होने पर भी जिंक की कीमत चुकानी पड़ रही है। साथ ही 45 किलो की यूरिया की खरीदी के लिए निर्धारित दर से 120 रुपए अधिक का भुगतान करना पड़ रहा है।

यूरिया की भरपूर सप्लाई के बाद भी जिस तरह कृत्रिम किल्लत बनाई जा रही है वह सोची-समझी रणनीति का एक हिस्सा है। जिला प्रशासन तक जानकारियां सामने आने लगी तब जाकर विभाग ने सक्रियता दिखाई। खानापूर्ति की तर्ज पर की गई कार्रवाई के बाद थोक कारोबारियों के  चिल्हर विक्रय के लिए जारी लाइसेंस निलंबित कर दिए गए तब इस बाजार ने नई रणनीति व नए ठिकाने की खोज की। इसमें उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों की उर्वरक दुकानों का भरपूर साथ मिला जिनके पास खुदरा विक्रय का लाइसेंस है। इन्हें रणनीति समझाई गई। लाभ गिनाए। अब यह बाजार इन की मदद से 266 रुपए 50 पैसे वाली यूरिया की बोरी 390 से 400 रुपए में बेच रहा है। सफलता भी मिल रही है क्योंकि विभाग जानकर भी अनजान बना हुआ है।

यूरिया के साथ लेना होगा जिंक

जिंक सल्फेट की कई किस्मों के बीच 90 रुपए प्रति किलो की सबसे कम कीमत वाली पैकेट बाजार में उपलब्ध है। इसकी मदद से खुदरा बाजार यूरिया की प्रति बोरी के साथ इसका लेना अनिवार्य कर चुका है। सूक्ष्म  तत्व के रूप में काम करने वाले जिंक सल्फेट कि बेवजह खरीदी किए जाने की वजह से किसान परेशान हैं। फिलहाल पौधों की स्थिति को देखते हुए इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि किसान पहले से ही जिंक वाले उर्वरकों का छिड़काव कर चुके हैं जो पोटाश और सुपर फास्फेट में  पहले से ही मिले हुए होते हैं।

इसलिए इस दर पर खरीदी

जिस तरह यूरिया की खरीदी के लिए शर्तें रखी जा रही है उसके बाद मजबूर किसान इसलिए इस शर्त को मान कर खरीदी कर रहा है क्योंकि यह काल अंतिम छिड़काव का है। इस दौरान जल्द तैयार होने वाली फसलों को यूरिया की जरूरत पड़ती रही है। इसलिए किसान बेवजह बढ़ाई गई कीमत और शर्तें मान कर यूरिया की खरीदी कर रहे हैं। जबकि देर से तैयार होने वाली किस्मों में ऐसी जरूरत की तैयारी करनी है।


जिले में यूरिया का पर्याप्त स्टॉक होने के बाद भी काला बाजारी का खेल रुक नहीं रहा है। खूले बाजार में कुछ लोगों के द्वारा यूरिया खाद की कालाबाजारी की जा रही है और दोगुने दाम में बेची जा रही है। मजबूरी में किसान महंगे दाम में भी यूरिया खरीदने को मजबूर हैं। इस साल किसानों की आफत कम होने का नाम नहीं ले रही है। पहले कोरोना के चलते लॉकडाउन से किसान परेशान रहे। जून महीने में शुरुआती अच्छी बारिश के बाद जुलाई में खंड वर्षा ने किसानों की परेशानी बढ़ाई। अगस्त के दूसरे सप्ताह से अच्छी बारिश होने से किसानों ने राहत की सांस ली और कृषि कार्य में तेजी आई, लेकिन बढ़े हुए यूरिया के दाम फिर से किसानों की परेशानी का सबब बने हुए हैं। जिले के कई हिस्सों में 265 रुपये बोरी में बिकने वाली यूरिया खाद 360 रुपये से लेकर 450 रुपये तक बेची जा रहा है। हालांकि कृषि विभाग के द्वारा शिकायत मिलने पर कालाबाजारी  रुकी है  ।

कुछ दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई भी की है, लेकिन इसके बाद भी कालाबाजारी थमती दिखाई नहीं दे रही है और अब भी कालाबाजारी की शिकायतें मिल रही हैं। यूरिया खाद की कालाबाजारी कर दोगुने दामों में बेचे जाने से किसान परेशान हैं। अधिक कीमत लिए जाने से क्षेत्र के किसानों में आक्रोश व्याप्त है। किसी कारणवश सोसाइटियों में लघु किसानों के सदस्यता पंजीयन नहीं होने से किसानों को बाजार से दोगुने दामों में यूरिया खाद लेने को मजबूर हैं। ऐसे किसानों को सोसाइटियों से खाद नहीं मिल पा रही है। उन्हें दुकानों से ही यूरिया खाद खरीदनी पड़ रही है, वहां किसानों को यूरिया खाद खरीदने के लिए अधिक दाम चुकानी पड़ रही है। साथ ही ऐसे किसान भी हैं, जिन्होंने अपना पिछला ऋण नहीं चुकाया है, उन्हें भी खुले बाजार से ही खाद खरीदनी पड़ रही है। किसानों का कहना है कि जब तक खाद के कालाबाजारी पर रोक नहीं लग जाती है, तब तक खाद के कीमतों पर अंकुश नहीं लग सकता है। नाम नहीं छापने के शर्त पर एक किसान ने बताया कि सरकार द्वारा तो सोसायटियों में यूरिया खाद उपलब्ध है, लेकिन उन्हीं किसानों के लिए है, जिन्होंने ऋण लिया है। अऋणी कृषकों को बाजार से यूरिया खरीदना पड़ रहा है। कुछ दुकानदार मुनाफा कमाने के चक्कर में अधिक दाम में खाद बेच रहे हैं। खाद का बिक्री बाजारों में भी धड़ल्ले से हो रही है। 

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