अजय चंद्राकर ने विधेयक पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हस्तक्षेप होगा. आप विरोध करेंगे तो क्या करेंगे. को-आपरेटिव मध्यप्रदेश और गुजरात के हिसाब से सफल नहीं हो सका. ये 90 और 45 दिन का औचित्य था. जो सदस्य हैं, जितने अपात्र हैं, उन्हें पीछे दरवाजे से पात्र बनाने की कोशिश है. 6 माह में चुनाव का प्रावधान है. अब आपने अधिकार दे दिया रजिस्ट्रार को, वो चुनाव न कराए. अब ये बताइये कि सुनेगा कौन? कार्रवाई कौन करेगा. संशोधन न्यायालय, सहकारिता की मूल भावना और संविधान के खिलाफ है.
इस पर मंत्री ने कहा कि जो जैसा करता है, वैसा ही सोचता है. 20 परिवारों को 10 कर रहे हैं, इसमें क्या दिक्कत है. 90 दिन के पंजीयन के समय को 45 दिन कर रहे हैं, तो क्या दिक्कत है. आगे कई समितियां हैं जो काम करना चाहती हैं, लेकिन उनके पास पूंजी नहीं है. अब वो किसी प्राइवेट से पैसे लेकर काम कर सकती हैं. हम आरबीआई की गाइड लाइन का पालन कर रहे हैं.
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