जानें हलषष्ठी की पूजा विधि
हलषष्ठी के दिन सुबह से नहा धोकर साफ कपड़े पहनकर गोबर से जमींन को अच्छे से पोत लें। इसके बाद वहां पर छोटे से तालाब का निर्माण करें। इसके बाद इस तालाब के आसपास झरबेरी और पलाश को लगा दें। इसके बाद पूजा में चना, जौ, गेंहू, धान, मक्का और मक्का से पूजा करें। इसके बाद हलछठ की कथा सुनाई जाती है। जिससे संतान की उम्र लंबी होती है।
भैंस के दूध का होता है उपयोग
हलषष्ठी के दिन गाय के दूध या दही का सेवन बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। इस दिन भैंस का दूध और भैंस के दूध से बनी घी का प्रयोग किया जाता है।
पसहर चावल का होता है विशेष महत्व
इस दिन बिना हल लगे फल, सब्जी और अनाज का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन पसहर चावल जिसे छत्तीसगढ़ में लाल भात कहा जाता है। विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था।
हल षष्ठी की व्रतकथा निम्नानुसार है....
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।
यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।
वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।
उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
0 Comments