Ticker

जानिए, कैसे पड़ा मोक्षदायिनी एकादशी नाम और क्या है इसकी पौराणिक कथा




हिंदू धर्म में एकादशी तिथि धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानी गई है। ऐसे में हर माह में पड़ने वाली एकादशी खास होती है इसी तरह मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी भी बहुत खास होती है। भारतीय धर्म शास्त्रों में यह एकादशी मोक्षदायिनी एकादशी के रूप में जाना जाती है। इस बार मोक्षदायिनी एकादशी 8 दिसंबर को पड़ रही है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी महत्वपूर्ण कथा और इसका महत्व।

अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन दिया था उपदेश

मोक्षदा एकादशी का धार्मिक महत्व पितरों को मोक्ष दिलानेवाली एकादशी के रूप में भी है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रत करने वाले व्यक्ति के साथ ही उसके पितरों के लिए भी मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन विधि विधान से पूजा पाठ के साथ उपवास करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मोक्षदायिनी एकादशी को मोक्षदायिनी कहते हैं क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। गीता पहला ऐसा ग्रंथ है, जिसे स्वयं श्रीहरि ने अपने द्वारा मानव जाति के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन अपने सगे संबंधियों पर बाण चलाने से घबराने लगे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, आत्मा और कर्तव्य के बारे में विस्तार से समझाया था।

मोक्षदा एकादशी कथा

पुरातन काल में गोकुल नगर में वैखानस नाम के राजा राज्य करते थे। एक रात उन्होंने स्वप्न में देखा कि उनके पिता नरक में बहुत बुरी यातनाएं झेल रहे हैं। अपने पिता को इस बुरी परिस्थिति में देख कर वह बहुत दुख हुए। सुबह होते ही उन्होंने राज्य के विद्वान पंडितों को बुलाया और अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा। उनमें से एक पंडित ने कहा आपकी समस्या का निवारण भूत और भविष्य के ज्ञाता पर्वत नाम के सिद्ध महात्मा कर सकते हैं। अत: आप उनकी शरण में जाएं।
मोक्षदायिनी एकाशी के व्रत का इस तरह मिला फल

राजा पर्वत महात्मा के आश्रम में गए और उनसे अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा, तब महात्मा ने उन्हें बताया कि उनके पिता से पूर्व जन्म में एक पाप हुआ था, जिस का परिणाम वह नर्क में भोग रहे हैं। तब ऐसा सुनकर राजा ने कहा, उनकी मुक्ति का मार्ग जानना चाहा। महात्मा बोले, ‘मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उपवास रखें एकादशी के पुण्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी।’ राजा ने महात्मा के कहे अनुसार विधिविधान से व्रत किया उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। स्वर्ग की ओर जाते हुए वह अपने पुत्र से बोले, ‘हे पुत्र! तुम्हारा कल्याण हों, यह कहकर वे स्वर्ग चले गए।’

नवभारत के पेज से ...........

Post a Comment

1 Comments

Ashok said…
Bahut badhiya jankari