अटल बिहारी वाजपेयी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। अंग्रेजों की लाठियां खाईं। जेल भी भेजे गए। उस समय उनकी उम्र कम थी, लेकिन देशभक्ति और साहस से भरे थे।
जनसंघ से शुरू हुई राजनीति
आजादी की लड़ाई के दौरान ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आए। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। अलग पहचान बनाई। संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया। 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए बलरामपुर सीट से सांसद बने। युवा थे। ओजस्वी भाषणों और विभिन्न विषयों पर पकड़ की वजह से विपक्ष की मजबूत आवाज बनकर उभरे।
लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष
जनाधार बढ़ा, लेकिन भारतीय जनसंघ समेत विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सत्ता से हटा पाने में असफल रहे। 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। भारतीय जनसंघ ने देश की कई पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव और नागरिक अधिकारों के निलंबन जैसे कदम का कड़ा विरोध किया। वाजपेयी समेत कई वरिष्ठ नेता जेल में डाल दिए गए। लंबी लोकतांत्रिक और कानूनी लड़ाई के बाद इंदिरा गांधी ने इस्तीफा दिया। 1977 में आम चुनाव हुए। भारतीय जनसंघ (बीजेएस) ने कई केंद्रीय और क्षेत्रीय दलों-समूहों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। नई दिल्ली लोकसभा सीट से जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी मोरारजी देसाई कैबिनेट में विदेश मंत्री बने।
कुशल रणनीतिकार
1962 के चीन के साथ युद्ध के बाद हिंदी-चीनी भाई का नारा गुम हो गया था। दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण थे। लंबे समय तक यह तनाव चला। विदेशमंत्री के तौर पर 1979 में अटल बिहारी वाजपेयी चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए। उनकी कुशल रणनीति से संबंध सामान्य होने लगे। पड़ोसी देशों से मधुर संबंधों के पैरोकार अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में पाकिस्तान की भी यात्रा की। 1971 के युद्ध में बुरी तरह से हारे पाकिस्तान से सारे संवाद टूट गए थे। कारोबार ठप था। यहां भी दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने में कुशल रणनीति का परिचय दिया। उनकी विदेश नीति सराही गई।
परमाणु शक्ति की वकालत की
वह निशस्त्रीकरण सम्मेलन में भी गए। शीत युद्ध का युग था। वाजपेयी ने भारत के परमाणु शक्ति से लैस होने की वकालत की। उन्होंने साफ कहा कि जब पड़ोसी देश चीन परमाणु हथियार से लैस है, तो भारत अपनी रक्षा के लिए इससे वंचित क्यों रहे? इस सम्मेलन में उन्होंने इस संबंध में जो दलीलें दीं, वह दमदार थीं। बाद में जब वह प्रधानमंत्री हुए, तो दूसरी बार बुद्ध मुस्कुराए, यानी परमाणु परीक्षण हुआ। भारत ने दूसरी बार पोखरण में यहपरीक्षण किया। भारत की सामरिक शक्ति की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी।
सर्वस्वीकार्य बने
अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेएस और आरएसएस के अपने कई साथियों के साथ 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। वह पार्टी के पहले अध्यक्ष बने। 1984 के आम चुनाव में भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली, लेकिन अब उनकी पहचान मजबूत राष्ट्रीय नेता की थी। आम जनता के बीच भाजपा जड़ें जमा रही थी। विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन को देशव्यापी बना रहे थे। भाजपा इस आंदोलन की केंद्र में थी। दिसंबर 1994 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। मार्च 1995 में गळ्जरात और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी को शानदार जीत मिली। भाजपा अब मजबूत विपक्षी दल था, जिसकी अखिल भारतीय पहचान मजबूत हो रही थी। नवंबर 1995 में मुंबई में हुए भाजपा के अधिवेशन में मई 1996 में होने वाले आम चुनाव के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को नेता घोषित किया गया, जो पार्टी की जीत पर प्रधानमंत्री बनेगा।
शिखर पुरुष
भाजपा 1996 के आम चुनाव में अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी, लेकिन वह सरकार मात्र 13 दिन ही चली। 1996 और 1998 के दौरान दो बार तीसरे मोर्चे की सरकारें गिरने के बाद नए सिरे से चुनाव कराए गए। पार्टी को एक बार फिर बढ़त मिली। कई दलों ने साथ सरकार बनाने का संकल्प किया था। हालांकि, जयललिता की पार्टी एआइडीएमके के समर्थन वापस लेने से सरकार अल्पमत में आ गई। विश्वास मत के दौरान एक मत से हारने के बाद सरकार फिर गिरी। 1999 के चुनाव में जनता ने फिर अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों में सत्ता की चाबी सौंपी। वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
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