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पढ़िए पुरी जी के भगवान जगन्नाथ मंदिर की दुर्लभ कथा!


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भगवान कृष्ण जी के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं बल्कि बलराम जी और सुभद्रा जी क्यो है…
द्वारिका में भगवान श्री कृष्ण जी शयन करते हुए एक रात निद्रा में अचानक राधे-राधे बोल पड़े। रुकमणी जी ने यह बात अन्य महारानियो को बतायी , महारानियों को आश्चर्य हुआ।
रुक्मिणी जी ने अन्य रानियों से वार्ता की कि, सुनते हैं वृन्दावन में राधा नाम की गोपकुमारी है हम सबकी इतनी सेवा निष्ठा भक्ति के बाद भी प्रभू ने उनको नहीं भुलाया है। राधा जी की , भगवान श्रीकृष्ण के साथ रहस्यात्मक रास लीलाओं के बारे में माता रोहिणी भली प्रकार जानती थीं। उनके पास जाकर सभी महारानियों ने अनुनय-विनय किया कि हमे भगवान की बाळ लीला के बारे में बताये । पहले तो माता रोहिणी ने टालना चाहा लेकिन महारानियों के हठ करने पर कहा, ठीक है। सुनो,
पहले सुभद्रा को पहरे पर दरवाजे में बिठा दो, ताकि कोई अंदर न आने पाए,
माता जी के कहने पर सुभद्रा दरवाजे पर बाहर बैठ गयी । अंदर माता रोहिणी जी सभी महारानियो को भगवान की बाळ लीला सुनाने लगी ।
कुछ समय बाद श्री कृष्ण जी अन्त:पुर की ओर आते दिखाई दिए। सुभद्रा ने उचित कारण बता कर द्वार पर ही रोक लिया।
थोडी ही देर हुआ था बलराम जी भी आ गये , और अंदर जाने लगे , लेकिन सुभद्रा जी ने उन दोनों को अंदर जाने से रोकने के लिय बीच में खडे होकर एक हाथ से कृष्ण जी और दुसरे हाथ से बलदाऊ जी के हाथ को पकड कर बाहर में ही रोकने की कोशिष करने लगी।



बहन के द्वारा पकडे जाने से दोनों भाई सुभद्रा जी को आंखे तरेर कर हाथ छोडने के लिय कहने लगे। भाव विभोर कर देने वाला भाई बहन के इस प्रेमभाव वाले वातावरण युक्त दुर्लभ दृश्य में अचानक नारद जी का आगमन हो गया , दोनों भाई के बीच में बहन सुभद्रा की इस दुर्लभ झांकी के दर्शन से गदगद हो गये । और अनायास ही नारद जी के मुखार बिंद से निकल पडा – वाह प्रभू वाह

भले बिराजो नाथ

तब से यह भजन उडीसा क्षेत्र में गाया जाता है। नारद जी ने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान आप तींनो के जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्य जनों के दर्शन हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे।
महाप्रभु ने तथास्तु कह दिया।
तब से भगवान उसी स्वरूप में जगन्नाथ पुरी में विराजमान हो गये।
हर 12 वर्ष के अंतराळ में जिस समय 2 आषाढ मास होता है तब भगवान जगन्नाथ जी के श्री विग्रहो को बदला जाता है।
महानीम नाम का एक पवित्र पेड
जिसमें शँख, चक्र, गदा ,पदम का निशान हो , जिसके नीचे सर्पो का तथा उपर चिडियो का वास न हो।
ऐसे पवित्र पेड से नया विग्रह मन्दिर परिसर स्थित मूर्ति निर्माण शाळा में बनाया जाता है।
पुराने श्री विग्रह को मन्दिर परिसर में ही कैवल्य वैकुंठ ( कोइली वैकुंठ )में विश्राम दे दिया जाता है।

दुनिया की सबसे बडी रसोई

जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद तैयार करने के लिए लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं।
मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है। यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। यह मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है।
यहां बनाया जाने वाला हर पकवान हिंदू धर्म पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही बनाया जाता है। भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। उसमें किसी भी रूप में प्याज व लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता।



भोग मिट्टी के बर्तनों में तैयार किया जाता है। यहां रसोई के पास ही दो कुएं हैं जिन्हें गंगा व यमुना कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। इस रसोई में 56 प्रकार के भोगों का निर्माण किया जाता है।
रसोई में पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाएगी, चाहे कुछ हजार लोगों से 20 लाख लोगों को खिला सकते हैं।
मंदिर में भोग पकाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं और लकड़ी पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर रखे बर्तन की भोग सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद भोग तैयार होता जाता है।
मंदिर की पांच सीढ़ियां चढ़ने पर आता है आनंदबाजार। यह वही जगह है जहां महाप्रसाद मिलता है। कहते हैं इस महाप्रसाद की देख-रेख स्वयं माता लक्ष्मी करती हैं।

मन्दिर की व्यापकता

मन्दिर का क्षेत्रफल चार लाख वर्ग फीट में है भूमि सतह से मन्दिर की उंचाई 214 फीट जिसके उपर 15 फीट की गोलाई का नीलचक्र जिसके उपर 18 फीट की लम्बे बांस पर महाध्वज फहराता है। प्रतिदिन शाम के समय एक व्यक्ति अपने पीठ पर ध्वज पताका का बडा सा गठरी अपने पीठ पर बांधकर बंदर की भांति मन्दिर के उपर चढता है।भयानक समुद्री तेज हवा के प्रवाह के मध्य पीठ से गठरी निकाल कर नीलचक्र व बांस के पताका को बदलकर पुराना पताका फिर से पीठ में बांधकर नीचे आता है। प्रत्येक एकादशी को ध्वजारोहण के बाद नीलचक्र के उपर ही मन्दिर शीर्ष की आरती की जाती है।
( जब भी आप जगन्नाथ जी जाने की योजना बनाए तो एकादशी तिथि को ध्यान में रखे , जिस दिन मन्दिर शीर्ष की आरती होती है , अन्य दिन में केवळ ध्वज पताका फहराया जाता है)

रथ में यात्रा

भगवान के रथ में यात्रा पर निकलने से सम्बंधित बहुत सी कथाये है । जिसके कारण इस महोत्सव का आयोजन होता है।।
1. कुछ लोग कहते है कि सुभद्रा अपने मायके आती है तो भाईयों से नगर भ्रमण की इक्छा वयक्त करती है तब दोनों भाई अपने बहन को लेकर रथ में घुमाने ले जाते है।
2. गुंडीचा मन्दिर में प्रतिष्ठित देवी इनकी मौसी लगती है जो तीनो भाई बहनो को अपने घर आने का निमंत्रण देती है। तब दोनों भाई बहन के साथ मौसी के घर 10 दिन के लिय रहने जाते है।
3. 15 दिन तक बिमार रहने के बादक्षिण-पूर्लाभ व आराम करने के लिय भगवान अपने भाई बहन के साथ मौसी के घर जाते है।

गजा मुंग का प्रसाद

पुरे साल भर भगवान जगन्नाथ जी को 56 भोग परिपूर्ण रूप से लगाया जाता है उस भगवान को उनके सबसे बडे पर्व रथयात्रा के दिन भीगे हुए चना और मुंग का भोग क्यो लगाया जाता है?????
भगवान जगन्नाथ जी की पूजा दिनचर्या में बहुत कुछ बातें दुर्लभ है । जैसे –
प्रत्येक सोमवार को जनेऊ बदला जाता है ,
हर बुधवार को हजामत बनायी जाती है ,
वैशाख शुक्ल तीज से 21 दिन की चंदन यात्रा,
ज्येष्ठ पूर्णिमा को 108 घडो के जल से स्नान कराया जाता है, जिससे भगवान का स्वास्थ्य खराब हो जाता है तब से लेकर 15 दिन तक भगवान की सेवा उनके स्वास्थ्य लाभ के रूप में काढे का भोग लगाकर किया जाता है। इसी क्रम में अंकुरित चने व मुंग का भोग 16 वें दिन यात्रा के उत्सव पर्व पर किया जाता है इस प्रसाद को *गजामुंग* के नाम से जाना जाता है। यह प्रसाद पुरे साल भर में एक ही दिन रथयात्रा के ही दिन प्राप्त किया जा सकता है।

देश विदेश में भी आयोजन

रथ यात्रा का आयोजन देश के प्राय सभी हिस्सो में होता है भारत देश के कई मन्दिरो से भगवान कृष्ण जी के प्रतिमा को रथ में बैठा कर नगर भ्रमण के लिय निकाला जाता है। विदेशो में इस्कॉन मन्दिर के द्वारा रथयात्रा का आयोजन होता है। डब्लिन,टोरेंटो, लंडन,मेलबर्न, पेरिस,सिंगापूर,न्यूयॉर्क, केलिफोर्निया तथा बांगलादेश सहित लगभग 100 से भी अधिक देशो में रथयात्रा का बहुत बडा आयोजन होता है जिसे एक त्योहार की तरह मनाया जाता है।

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1 Comments

बहूत सुंदर